Farmers vs Modi | The Truth about Farmers Protest 2.0 | Sukhdesh Yadav

uphelp
By uphelp
The Truth about Farmers Protest

Farmers vs Modi | The Truth about Farmers Protest 2.0 | Sukhdesh Yadav नमस्कार दोस्तों देश में किसान एक बार फिर से सड़कों पर आ गए हैं प्रोटेस्ट करने के लिए और इस बार उनकी सबसे बड़ी डिमांड है एमएसपी यानि मिनिमम सपोर्ट प्राइस की लीगल डाइजेशन।

एमएसपी मिनिमम सपोर्ट प्राइस।

एमएसपी, फिनॉल क्रॉप्स।

बहुत से न्यूज़ एंकर और यूट्यूबर्स का दावा है कि अगर सरकार ने डिमांड पूरी कर दी तो देश की इकॉनमी तबाह हो जाएगी। देश को 10,00,000 करोड़ से ज्यादा का खर्चा उठाना पड़ेगा। आखिर क्या सच्चाई है इसके पीछे की? क्या किसानों की डिमांड सही है या गलत? आइए समझते हैं फार्मिंग इंडस्ट्री की असलियत। Farmers vs Modi

आज के इस वीडियो में। एमआरपी यानी मैक्सिमम रीटेल प्राइस। यह वह दाम है, जिससे ज्यादा में चीजें नहीं बेची जा सकती। मार्केट में एमआरपी एग्जीबिट करता है ताकि देश की आम जनता को कंज्यूमर्स को प्रोटेक्ट किया जा सके। कोई भी कंपनियां, दुकानदार हमें एक्सप्लॉइट न करें। एमआरपी नहीं होता तो आप इमैजिन कर सकते हैं। दोस्तो, किस तरीके से लोगों को लूटा जाता है।

MSP Minimum Support Price.

The Truth about Farmers Protest
The Truth about Farmers Protest

अब रेगिस्तान में पानी की कमी हो रही है। ये लोग पानी की बोतल दो हज़ार रुपए की। आपके शहर में कुकिंग ऑयल की कमी हो रही है। ये लो हजार रुपए पर लीटर का कुकिंग ऑयल खरीदें। अब एमआरपी के ही कॉन्ट्रास्ट में इसकी उल्टी चीज है। एमएसपी यानी मिनिमम सपोर्ट प्राइस। कम से कम किसानों को इतना दाम तो दिया ही जाएगा। उनकी फसलों का सेम रीजन है ताकि कंपनी और मिडिलमैन उन्हें एक्सप्लॉइट न कर सकें।

अगर खरीदने वालों ने एक माफिया बना रखा है तो किसान ₹2 पर किलो प्याज और ₹0.50 पर किलो गार्लिक बेचने पर मजबूर ना हो। कम से कम उसे एक मिनिमम प्राइस की तो गारंटी दी जाए। एमआरपी की तरह एमएसपी भी बड़ी लॉजिकल सी चीज है। इसलिए ज्यादातर पॉलिटिशियंस हमेशा इसके फेवर में ही खड़े हुए हैं। जैसे कि बीजेपी लीडर नरेंद्र मोदी। दो हज़ार 14 से पहले सुनिए उन्होंने क्या कहा था।

MSP, Phenol Crops.

The Truth about Farmers Protest
The Truth about Farmers Protest

मिनिमम सपोर्ट प्राइस हर किसान के लिए सरदर्द बना हुआ है और सरकार के लिए वो मन मंसूबे करने का एक बहुत बड़ा तरीका बन गया है

एक राज्य में गेहूं का मिनिमम सपोर्ट प्राइस एक होगा। बगल के राज्य में दूसरा होगा। एक जगह पर चावल का एक रेट होगा, दूसरी जगह दूसरा रेट होगा। लेकिन सब जगह खरीदने वाली भारत सरकार।

लेकिन किसान को सही दाम नहीं मिलते। जो दाम तय करने की नीति निर्धारित नहीं हुई।

वह कितने बढ़िया तरीके से। नरेंद्र मोदी ने इस प्रॉब्लम को समझाया। तालियां इनके लिए, लेकिन सिर्फ प्रॉब्लम ही नहीं, सॉल्यूशन भी बताते हैं। आगे सुनिए।

हार से। भाइयो बहनों, हमने हमारे घोषणा पत्र में कहा है कि मिनिमम सपोर्ट प्राइस उसके लिए एक नियम तय होंगे। उसके पैरामीटर तय होंगे। उसके आधार पर तय होगा।

The Truth about Farmers Protest 2.0

The Truth about Farmers Protest
The Truth about Farmers Protest

और इसीलिए हमने कहा है किसान का जो इनपुट कॉस्ट आता है पानी का खर्चा, मजदूरी का खर्चा, बिजली का खर्चा, बीज का खर्चा, खाद का खर्चा, दवाई का खर्चा जितना भी उसकी लागत लगती है उस लागत के ऊपर उसका 50% प्रॉफिट लिया जाएगा और उसको मिनिमम सपोर्ट प्राइस से खरीदा जाएगा। भारत में एमएसपी को इशू किया जाता है सीएसीपी के द्वारा यानी कमिशन फॉर एग्रीकल्चर कॉस्ट एंड प्राइस। ये डी सेंट्रलाइज्ड एजेंसी है जिसे सिक्सटी फाइव में स्टैब्लिश किया गया था और आज के दिन मिनिस्ट्री ऑफ एग्रीकल्चर एंड फार्मर्स वेलफेयर के अंडर फंक्शन करती है।

लेकिन सवाल ये कि एमएसपी की कॉस्ट कैसे डिसाइड करी जाए? एमएसपी कितनी होनी चाहिए? आखिर साल दो हज़ार 2 में कमिटी बनाई गई थी हाई लेवल कमिटी। लॉन्ग टर्म ग्रेन पॉलिसी जिसे हेड किया जा रहा था इकॉनमिस्ट अभिजीत सेन के द्वारा। इस कमिटी ने कहा कि एमएसपी होनी चाहिए सीटू कॉस्ट ऑफ प्रोडक्शन के बेसिस पर। अब इसका क्या मतलब है यहां पर सीटू समझने के लिए हमें एक और एफएल कॉस्ट को भी समझना पड़ेगा। The Truth about Farmers Protest

पहले आती है टू कॉस्ट। ये वो कॉस्ट है जो किसानों को पे करनी पड़ती है। डायरेक्ट एक्सपेंसेज के तौर पर किसान जो सीड्स खरीदते हैं, फर्टिलाइजर खरीदते हैं, पेस्टिसाइड्स खरीदते हैं, लेबर को हायर करते हैं, अपनी फील्ड में काम करने के लिए फ्यूल का खर्चा जो आता है। ये सब टू कॉस्ट है। इसके बाद आती है एफएल। कॉस्ट एफएल का फुल फॉर्म है फैमिली लेबर कॉस्ट है, जो एक एस्टिमेट एंड वैल्यू है। अनपेड फैमिली लेबर का मतलब एक किसान जब अपने खेत में काम करता है, अक्सर उसके परिवार के लोग भी उसकी

मदद करते हैं खेती करने में और क्योंकि उसके परिवार के लोग अपना समय लगाकर उसके काम में हाथ बटा रहे हैं तो उनकी लेबर की भी तो कॉस्ट होगी। वो अपने समय में यह करने की जगह कोई और नौकरी भी कर सकते थे। नौकरी की उस ऑपर्च्युनिटी को उन्होंने मिस किया। इस चीज को इकोनॉमिक्स में अक्सर ऑपर्च्युनिटी कॉस्ट कहा जाता है। तो यह एक और एफएल कॉस्ट सीएसीपी आज के दिन एमएसपी डिसाइड करने के लिए टू प्लस एफएल कॉस्ट को लेता है और उसका वन पॉइंट फाइव टाइम्स कर देता है। इस तरीके से आज के दिन एमएसपी डिसाइड करी जाती है। The Truth about Farmers Protest

Farmers vs Modi

The Truth about Farmers Protest
The Truth about Farmers Protest

लेकिन अभिजीत सेन की कमिटी ने कहा था कि हमें सीटू कॉस्ट को कंसीडर करना चाहिए। सीटू का फुलफॉर्म कॉम्प्रिहेंसिव कॉस्ट सीटू। कॉस्ट में हम ना सिर्फ टू और एफएल कॉस्ट को लेंगे बल्कि हम ओल्ड कैपिटल और रेंटल वैल्यू लैंड की कॉस्ट को भी कंसीडर करेंगे। इसे एक एग्जाम्पल से बेहतर समझ सकते हो जैसे कि एक फोटोग्राफर जिसका अपना खुद का फोटो स्टूडियो है। अपना काम करने के लिए उसे ना सिर्फ खर्चा उठाना पड़ता है। फोटो खींचने का, फोटो प्रिंट कराने का बल्कि कैमरा खरीदने का भी। स्टूडियो का रेंट पर करने का भी। फोटोग्राफर के स्टूडियो की तरह।

एक किसान की जमीन की भी अपनी रेंटल वैल्यू होती है। अगर उसकी खुद की जमीन है तो वह कैपिटल है और अगर उसकी खुद की जमीन नहीं है तो वो उस पर रेंट पर करता है। इसके अलावा फोटोग्राफर के कैमरे, स्टूडियो लाइट्स की तरह एक किसान को भी ट्रैक्टर खरीदना होता है। कल्टीवेटर खरीदना होता है और किसान एक ट्रैक्टर को सिर्फ मजे मजे के लिए तो खरीद नहीं रहा है

। खेती करने के लिए ही खरीदा जा रहा है। ट्रैक्टर को तो उस कॉस्ट को भी अकाउंट में लेना पड़ेगा कि नहीं लेना पड़ेगा। इन्हीं सब चीजों को ओल्ड कैपिटल एसेट्स कहा जाता है। और अभिजीत सेन की कमीशन रिपोर्ट ने यही कहा कि सीटू कॉस्ट में हम टू कॉस्ट, एफएल कॉस्ट और इस एक्सट्रा कॉस्ट को भी इंक्लूड करें और फिर एमएसपी का नया बेसिस बनाएं। इसके बाद दोस्तों स्वामीनाथन रिपोर्ट आती है साल दो हज़ार चार। The Truth about Farmers Protest

में एमएस स्वामीनाथन नाम के एक इंसान नैशनल कमिशन ऑन फार्मर्स को हेड कर रहे थे। शायद आपने इनका नाम ऑलरेडी सुना हो, क्योंकि ग्रीन रेवोल्यूशन के यह वन ऑफ द आर्किटेक्ट थे। दो हज़ार चार से लेकर दो हज़ार छह के बीच में स्वामीनाथन कमीशन पाँच रिपोर्ट्स रिलीज करता है। टोटल में ऑलमोस्ट दो हज़ार पेजेस की ये सारी रिपोर्ट्स थी। इसमें पांचवी रिपोर्ट के टू हंड्रेड फोर्टी सिक्स पेज पर लिखा गया है एमएसपी शुड बी लीस्ट फिफ्टी परसेंट मोर देन वेटेड एवरेज कॉस्ट ऑफ प्रोडक्शन। The Truth about Farmers Protest

अब कुछ लोग कन्फ्यूजन जाहिर करते हैं

The Truth about Farmers Protest
The Truth about Farmers Protest

कि स्वामीनाथन कमीशन एक्चुअली में सिटी कॉस्ट की बात कर रहे थे या टू प्लस एफएल कॉस्ट की बात कर रहे थे। लेकिन अगर हम पूरी रिपोर्ट को देखेंगे तो कोई कन्फ्यूजन नहीं है। पेज सेवन टी फोर से लेकर टी फोर के बीच में डीटेल्ड डिस्कशन किया गया है कि कैसे ज्यादातर स्टेट्स में एमएसपी सीटू कॉस्ट को रिकवर नहीं कर पा रहा है और अगर यह सीटू कॉस्ट रिकवर हुई ही नहीं तो उन फसलों की किसान खेती करना ही छोड़ देंगे। लॉन्ग टर्म में ये 278 पेज की रिपोर्ट मिनिस्ट्री ऑफ एग्रीकल्चर की वेबसाइट पर मौजूद है। अगर आप देखना चाहें। इसका लिंक मैंने नीचे डिस्क्रिप्शन

में डाल दिया है। इकॉनोमिक्स प्रोफेसर आर रामा कुमार बताते हैं कि एमएस स्वामीनाथन ने जब इस रिपोर्ट को यूनियन एग्रीकल्चर मिनिस्ट्री के सामने पेश किया था तो उस प्रेजेंटेशन की ट्वेंटी सेकंड स्लाइड पर क्लियरली मेंशन किया गया था कि एमएसपी की कैलकुलेशन करी जाएगी। सीटू कॉस्ट प्लस फिफ्टी परसेंट के साथ। 28 सेप्टेम्बर दो हज़ार 17 को एमएस स्वामीनाथन ने यह भी ट्वीट किया कि एमएसपी कम से कम सीटू प्लस फिफ्टी परसेंट होनी चाहिए। The Truth about Farmers Protest

विद प्रोक्योरमेंट, स्टोरेज और डिस्ट्रीब्यूशन की कॉस्ट इनक्लूड तो यह एक स्टेप और आगे चले गए। पोस्ट हार्वेस्ट कॉस्ट की भी बात करने लगे। जब किसान अपनी फसलों को स्टोर करेंगे, स्टोरेज की भी कॉस्ट आएगी। उसको भी हमें अकाउंट में लेना चाहिए। ये चीज सिर्फ इस ट्वीट में ही नहीं बल्कि स्वामीनाथन कमीशन की दूसरी रिपोर्ट में भी मेंशन की गई थी। 412 पेज नंबर पर लिखा गया था कि सीएसीपी शुड लुकिंग टू द एस्पेक्ट ऑफ रिस्क फैक्टर। मार्केटिंग पोस्ट हार्वेस्ट एक्सपेंसेज। सुनकर लगेगा कि यह कितना पैसा देना चाहते हैं किसानों को। हमारी तो देश की इकॉनमी ही क्रैश हो जाएगी।

अगर इतना सारा पैसा हम किसानों को देने लग गए।

The Truth about Farmers Protest
The Truth about Farmers Protest

लेकिन जरा सोचकर देखो कोई भी और बिजनेस जो देश में किया जा रहा है, वह इस तरीके से काम नहीं करता। क्या किसी भी बिजनेस को करने में जो सारी कॉस्ट आती है, उन सबको अकाउंट में लिया जाता है। ज्यादातर कंपनी तो अपनी ऑफिस की गाडिय़ों को, अपने ट्रैवल को, अपने टीवी को, ट्रॉली बैग को, ब्लेजर्स को, नेटवर्किंग को, चाय समोसा को, पीजा को सबको कंपनी के एक्सपेंसेज में डाल देती है। तो किसानों के लिए चार कॉस्ट The Truth about Farmers Protest

अकाउंट में रखना क्या गलत है? जो इनपुट कॉस्ट है सीड फर्टिलाइजर, पानी की, उनके फैमिली लेबर की जो कॉस्ट है, उनके कैपिटल एसेट्स की जो कॉस्ट है और फाइनली जो मार्केटिंग और पोस्ट हार्वेस्ट एक्सपेंसेज आते हैं। स्वामीनाथन रिपोर्ट ने दो और चीजें कही, जो बड़ी इंटरेस्टिंग थी। पहला तो यह कि एमएसपी को न सिर्फ सरकार के ऊपर अप्लाई करना चाहिए, बल्कि प्राइवेट ट्रेडर्स पर भी जो भी किसान से खरीद रहा है,

वह एमएसपी पर तो कम से कम खरीदे और दूसरा एमएसपी को सिर्फ एक बॉटम लाइन की तरह कंसीडर किया जाए। इससे नीचे दाम पर कोई नहीं खरीद सकता। लेकिन सरकार जब खरीदे तो सरकार उसी दाम पर खरीदे जिस दाम पर प्राइवेट ट्रेडर्स खरीदते हैं। अगर मार्केट का प्राइस बढ़ता है तो सरकार को भी ज्यादा पे करना चाहिए। The Truth about Farmers Protest

इस रिपोर्ट ने तो यह तक कहा था कि किसानों का जो इनकम है वह सिविल सर्वेंट के कंपेयर एबल होना चाहिए। इमैजिन करके देखो, लेकिन छोड़ो इतनी दूर की क्या बात करनी। हम सिर्फ सीटू प्लस फिफ्टी परसेंट कॉस्ट को लेकर चलते हैं। अब सवाल यह कि कौन किसानों के साथ खड़ा हो। उनको सही दाम देने के लिए।

मैं किसानों से यह सरकारों के दमन से मुक्ति दिलाना चाहता।

The Truth about Farmers Protest
The Truth about Farmers Protest

नरेंद्र मोदी। उन्होंने न सिर्फ किसानों और एमएसपी की बात करी थी बल्कि उन्होंने तो संकल्प भी ले डाला।

भारत की आर्थिक स्थिति सुधार ली है। वो भारत के किसान की स्थिति सुधारने पड़ेगी और उसी को लेकर के भारतीय जनता पार्टी आज आपका आशीर्वाद मांगने आ रही है। The Truth about Farmers Protest

एक बार जोरदार तालियां इनके लिए क्या बेहतरीन तरीके से इन्होंने अपनी बात रखी है। मतलब पहले दो मिनट में प्रॉब्लम समझाई फिर अपना सॉल्यूशन भी दे दिया और और आगे जो बोलते हैं उसे सुनकर आपकी आंखों में आंसू आ जाएंगे।

लालबहादुर शास्त्री कहते थे। जय जवान जय किसान।

The Truth about Farmers Protest
The Truth about Farmers Protest

उन्होंने कहा युद्ध के मैदान में जितने जवान मरे हैं, उससे ज्यादा मेरे किसानों ने आत्महत्या की है। बेमौत मरना पड़ा है और इसलिए मेरे भाइयों और बहनों, अगर भारत का जीवन बदलना है तो भारत के गांवों का जीवन बदलना होगा।

भारत का जीवन बदलना है तो भारत के गांव का जीवन बदलना पड़ेगा।

सच बताऊँ दोस्तों, मेरे लिए ज्यादा कुछ बोलने को बचा ही नहीं है। इतने बढ़िया तरीके से नरेंद्र मोदी ने अपनी।

Also:- Arun Goel अरुण गोयल का चुनाव आयोग से इस्तीफ़ा | Arun Goel resigns from the EC | 2024

Share This Article
Leave a comment