Electoral Bonds SBI नमस्कार। मैं Sukhdesh Yadav। सुप्रीम कोर्ट से बार बार डांट खा लेंगे मगर इलेक्टोरल बॉन्ड के बारे में नहीं बताएंगे। लगता है भारत सरकार इसी लाइन पर चल रही है कि एक एक याचिका के सहारे जानकारी को सामने आने से रोका जाए या देरी की जाए ताकि जनता को पता न चले। आखिर इसमें कितना बड़ा घोटाला हो सकता है कि सरकार नहीं बताने के लिए इतना प्रयास कर रही है।
Electoral Bonds आज उद्योग जगत की संस्था फिक्की को जो डांट पड़ी है, सुप्रीम कोर्ट में जो डांट पड़ी है कि उसके सामने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को पड़ी डांट अब गुलाब जामुन लगने लगी है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और उनकी बेंच के सदस्य जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस संजीव खन्ना के सामने किसी की कोई दलील नहीं चल पा रही थी।
what are electoral bonds
फिर भी डांट खाने रोज ये नए नए संगठन को आगे कर दिया जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट में आज जो भी हुआ है उसे लेकर कोई संदेह नहीं होना चाहिए कि इलेक्टोरल बांड की जानकारी को रोकने के लिए कौन लगा है। किसे डर है कि जनता को पता न चले। सारी शक्ति लगा दी गई है कि बांड के बहाने जो लूट हुई है उसकी जानकारी घर घर तक नहीं पहुंचे। अब जनता को भी अपनी शक्ति लगानी पड़ेगी कि वह एक एक जानकारी जमा करे और घर घर पहुंचाए।
हमारा ही नहीं उन सभी का वीडियो देखिए जो इस घोटाले पर रिपोर्ट कर रहे हैं। दो हज़ार 24 के चुनाव के सबसे बड़े घोटाले को गोदी मीडिया गायब कर रहा है। कोर्ट के आदेश से बाहर न आ सके तो कोर्ट में याचिका डाली जा रही है ताकि कुछ दिन और टल जाए। जहां है मामला वहीं अटक
Electoral Bonds
जाए। मगर कोर्ट को यह बात समझ आ गई है कि भारत के हित में इस घोटाले का भांडा फोड़ सबसे ज़रूरी है। यह हमारा पहला वीडियो है आज का। इसके बाद दूसरा वीडियो भी आएगा। आज ही आएगा। देखते रहिए और पड़ोसियों को भी दिखाते रहिए। दिनेश कुमार खरा। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के चेयरमैन। 10 महीने का सेवा विस्तार मिला है।
electoral bonds meaning
यह व्यक्ति बैंक के करोड़ों ग्राहकों और लाखों कर्मचारियों को शर्मसार किए जा रहा है। इतने ऊंचे पद पर बैठे व्यक्ति को चीफ जस्टिस ने कायदे से समझा दिया कि फैसले में क्या लिखा है, क्या करना है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि स्टेट बैंक का रुख देखकर लगता है कि आप कुछ खास डिटेल के बारे में बताएं।
हम वही बताएंगे, मगर यह सही नहीं है। स्टेट बैंक के चेयरमैन को कोर्ट का फैसला पढ़ लेना चाहिए। बैंक के चेयरमैन के रूप में उनका कर्तव्य बनता है कि वे फैसले को लागू करें। कहें कि उनके पास जो भी जानकारी है, सभी सार्वजनिक करेंगे। क्योंकि जब हम कहते हैं कि सभी जानकारी देनी है तो इसका मतलब है कि जो गुप्त भी है वह भी बतानी है। क्या किसी चेयरमैन को यह बताना पड़ेगा?
कोर्ट का आदेश क्या है? यह हालत हो गई है। इस चेयरमैन और बैंक की या किसकी सेवा के लिए किया जा रहा है। दिनेश कुमार खैरा क्या सेवा विस्तार का कर्ज चुका रहे हैं? क्या बैंक का देश की जनता के प्रति अदालत के फैसले के प्रति कोई कर्ज नहीं, कर्तव्य नहीं? सुप्रीम कोर्ट ने पूरे कानून को रद्द कर दिया है।
electoral bonds upsc
इस कानून को चोरी का अड्डा बनाने के लिए संविधान में जो भी संशोधन किए गए थे, उसे भी रद्द कर दिया है। तब फिर स्टेट बैंक चुपचाप सारी बातें एक साथ क्यों नहीं बता रहा? स्टेट बैंक ऑफ इंडिया कितनी बार सुप्रीम कोर्ट से डांट खाएगा? इस बार लगता है कि वकील हरीश साल्वे को आगे करने के बाद भी उसकी एक भी कोशिश कामयाब नहीं हुई।
जब कोर्ट ने कह दिया कि सारी जानकारी मतलब जो गुप्त भी है, उसे सार्वजनिक करनी है तो बार बार स्टेट बैंक ऐसी हरकत क्यों कर रहा है। किसे बचाने के लिए यह सब किया जा रहा है। या तो जनता को सीधे सीधे चुनौती दी जा रही है कि हमने आपको धर्म की घुट्टी पिलाकर हमेशा के लिए सुला दिया है
Electoral Bonds SBI
और अब आपको कुछ भी पता नहीं चलने देंगे और न हमने आपको जानने लायक समझने लायक छोड़ा है। जब यह कानून रद्द हो गया, इसके लिए किए गए सारे संशोधन रद्द हो गए, तब यह सरकार, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, कंपनियां और राजनीतिक दल खुद से सारी जानकारी सड़क पर क्यों नहीं लाकर फेंक देती हैं?
क्यों इसे मैनेज करने के लिए इतना कुछ किया जा रहा है? स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को यूनीक कोड देना पड़ेगा। चीफ जस्टिस और उनकी बेंच के सदस्यों की सख्ती आज देखने लायक थी। आम तौर पर मीडिया इसे डांट फटकार के रूप में ही लिखता है। हम भी डांट का इस्तेमाल करते हुए बैंक को पड़ी डांट की गिनती कर रहे हैं ताकि पता चले कि।
electoral bonds scheme
भारत के इतिहास के सबसे बड़े घोटाले को छिपाने के लिए कितनी मेहनत हो रही है। यही है रामराज्य का नाम लेकर राज करने वालों की ईमानदारी का नमूना डांट नंबर वन। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, हमने स्टेट बैंक को सारी जानकारी देने के लिए कहा है। इसमें बॉन्ड के पीछे जो गुप्त नंबर होता है, वह भी शामिल है।
स्टेट बैंक नहीं तय कर सकता कि कौन सी जानकारी देनी है, कौन सी जानकारी नहीं देनी है। हम मानकर चलते हैं कि बैंक खुलकर जानकारी देगा। कोर्ट के समक्ष पारदर्शिता से पेश होगा। कोर्ट के साथ भेदभाव नहीं करेगा। डांट नंबर दो स्टेट बैंक क्या यह कहना चाहता है कि आप ही बताइए क्या बताना है?
हम वही बताएंगे। यह सही नहीं है। डांट नंबर तीन जब हम कहते हैं कि सारी जानकारी देनी है तो इसमें गुप्त डेटा भी शामिल है। अभी स्टेट बैंक को पड़ी डांट खत्म नहीं हुई है और फिक्की को मिली डांट पर तो हम आए भी नहीं हैं। बैंक के वकील साल्वे ने कहा कि क्या हम बता सकते हैं कि बैंक ने आदेश को कैसे समझा है।
हम सारी बातें रखना चाहते हैं। इस पर चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि हम चाहते हैं कि आपके पास जो भी जानकारी है, बॉन्ड को लेकर वह सब बताएं। यह हो गई डांट नंबर चार। अदालतें डांट फटकार उस तरह से नहीं लगाती। उनके बोलने का वैसे कायदा होता है। सुप्रीम कोर्ट ने आज स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की हालत खराब कर दी।
supreme court electoral bonds
कोई बैंक बार बार जाए और कोर्ट वही बात बार बार दोहराए तो इसे डांट ही कहना चाहिए। जैसे ही हरीश साल्वे ने कहा कि अप्रैल 2 हज़ार 19 को चुनाव आयोग से कोर्ट ने कहा था कि राजनीतिक दलों को जो चंदा दिया गया है, उसकी सारी जानकारी सीलबंद लिफाफे में दी जाए। तब चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ने फिर फटकार लगाई और कहा कि हम यह समझते हैं कि आप राजनीतिक दलों की तरफ से पैरवी नहीं कर रहे।
इसे गिनते हैं डांट नंबर पाँच। इस बिंदु को ठीक से समझिए। हरीश साल्वे फैसला पढ़ने लगे और कहने लगे कि हम यह समझें कि आपने कहा है कि जानकारी सीलबंद लिफाफे में रखनी है और राजनीतिक पार्टी को बॉन्ड की डिटेल से क्या करना है। पार्टियां अपने आप बता देंगी कि किसने पैसा दिया। इस पर चीफ जस्टिस ने कह दिया, आप
राजनीतिक दल के वकील हैं या राज्य की ओर से। यानी सरकार की ओर से स्टेट की तरफ से। चीफ जस्टिस ने कहा कि जो भी जानकारी है आपको देनी है। अब आते हैं अगली डांट पर। यह डांट कुछ ज्यादा खतरनाक है। चीफ जस्टिस ने कहा कि बैंक को बॉन्ड नंबर बताना होगा। यही नहीं, उन्होंने यह भी कहा कि बैंक को हलफनामा लिखकर देना होगा कि आपने कोई जानकारी नहीं छुपाई। वकील साल्वे ने कह दिया कि हम ऐसा ही करेंगे।
electoral bonds minimum value
बैंक कोई जानकारी नहीं छिपा आएगा। हरीश साल्वे अनुभवी और बड़े वकील हैं, लेकिन इतने कमजोर केस की पैरवी जब बड़े वकील भी करते हैं तो उनकी दलीलें सुनने में तो अच्छी लग सकती हैं, मगर साबित कमजोर ही होती हैं। हरीश साल्वे की दलील से ऐसा कुछ भी नहीं लगा कि अनुभवी वकील के पास मजबूत तर्क हैं। कोर्ट के जवाब के सामने उनकी दलीलें स्कूली बच्चे के बहाने की तरह नजर आ रही थीं।
सुनिए इस दलील को। हरीश साल्वे ने कहा कि मीडिया हमारे पीछे पड़ा है कि अवमानना की कार्रवाई हो जाएगी। बैंक को देख लेंगे। मतदाताओं को पता चलना एक बात है, लेकिन अगर जांच को लेकर जनहित याचिकाएं दायर हो जाएं, इसकी जांच करो, उसकी जांच करो तो मुझे नहीं लगता कि कोर्ट के फैसले का ऐसा मकसद भी है। बताइए मीडिया क्या कहेगा?
कोर्ट में केस हो जाएगा, इसका डर सता रहा है। अगर किसी कंपनी को चंदा देने के बदले लाखों करोड़ों का धंधा मिला है। कोई कंपनी इसी साल बनती है और चंद महीने में करोड़ों का चंदा देती है, उसका मुनाफा भी उतना नहीं तो जांच होनी चाहिए। जनहित याचिका तो दायर होनी चाहिए। जब सरकार खुद से जांच नहीं करेगी तो लोग कोर्ट के पास जाएंगे। जाहिर है, यह कमजोर दलील थी और कोर्ट के सामने इसे टिकना भी नहीं था।
electoral bonds party wise
कोर्ट में जो हालत थी, उसे देख कर लगता है कि अब सरकार पब्लिक के बीच कहीं रोने न लग जाए कि किसी तरह बॉन्ड की रिपोर्ट को गायब कीजिए। आप लोग प्लीज कोई भी खबर मत पढ़िए। हम लोग पकड़ा जाएंगे, धरा जाएंगे। कहीं छपा हुआ देखिए तो मत देखिए। आंखें बंद कर लीजिए। हम लोग धरा जाएंगे। यह लेवल है क्या इस सरकार का।
सरकार की तरफ से सॉलीसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि कोर्ट को पता होना चाहिए कि पब्लिक में किस तरह से अदालत का फैसला चल रहा है। जजों को इस बारे में जानकारी नहीं है कि बाहर कैसी बातें हो रही हैं। विच हंटिंग शुरू हो गई है, सरकार के लेवल पर नहीं मगर दूसरे लेवल पर। जो लोग कोर्ट के सामने हैं वह प्रेस में इंटरव्यू दे रहे हैं और कोर्ट को शर्मिंदा कर रहे हैं। सोशल मीडिया पोस्ट भी चल रही है। जिन। कम।
Also :- Apple iphone 15 Pro Max
2024 का चुनाव शुरू | Elections 2024 announced | Sukhdesh Yadav